Mirza Ghalib
मिर्ज़ा ग़ालिब के शेर
हम को मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन
दिल के ख़ुश रखने को ‘ग़ालिब’ ये ख़याल अच्छा है
इश्क़ ने ‘ग़ालिब’ निकम्मा कर दिया
वर्ना हम भी आदमी थे काम के
इस सादगी पे कौन न मर जाए ऐ ख़ुदा
लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं
हम को उन से वफ़ा की है उम्मीद
जो नहीं जानते वफ़ा क्या है
बे-ख़ुदी बे-सबब नहीं ‘ग़ालिब’
कुछ तो है जिस की पर्दा-दारी है
Firaq Gorakhpuri
फ़िराक़ गोरखपुरी के शेर
बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं
तुझे ऐ ज़िंदगी हम दूर से पहचान लेते हैं
कोई समझे तो एक बात कहूँ
इश्क़ तौफ़ीक़ है गुनाह नहीं
हम से क्या हो सका मोहब्बत में
ख़ैर तुम ने तो बेवफ़ाई की
मैं हूँ दिल है तन्हाई है
तुम भी होते अच्छा होता
तेरे आने की क्या उमीद मगर
कैसे कह दूँ कि इंतिज़ार नहीं
Amir Khusrow
अपनी छवि बनाई के मैं तो पी के पास गई,
जब छवि देखी पीहू की सो अपनी भूल गई।
साजन ये मत जानियो तोहे बिछड़त मोहे को चैन
दिया जलत है रात में और जिया जलत बिन रैन
अंगना तो परबत भयो, देहरी भई विदेस
जा बाबुल घर आपने, मैं चली पिया के देस
खुसरो ऐसी पीत कर जैसे हिन्दू जोय,
पूत पराए कारने जल जल कोयला होय।
Rahat Indori
दोस्ती जब किसी से की जाए
दुश्मनों की भी राय ली जाए
शाख़ों से टूट जाएँ वो पत्ते नहीं हैं हम
आँधी से कोई कह दे कि औक़ात में रहे
हम से पहले भी मुसाफ़िर कई गुज़रे होंगे
कम से कम राह के पत्थर तो हटाते जाते
मेरे चेहरे पे कफ़न ना डालो,
मुझे आदत है मुस्कुराने की,
मेरी लाश को ना दफ़नाओ,
मुझे उम्मीद है उस के आने की !
आँख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो,
ज़िंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो !
कहते हैं जीते हैं उम्मीद पे लोग,
हमको तो जीने की भी उम्मीद नहीं !
ये दुनिया है इधर जाने का नहीं,
मेरे बेटे किसी से इश्क कर,
मगर हद से गुजर जाने का नहीं ।
Kabir
ग़म का ख़ज़ाना तेरा भी है मेरा भी
ये नज़राना तेरा भी है मेरा भी
इस सोच में ज़िंदगी बिता दी
जागा हुआ हूँ कि सो रहा हूँ
काँटों को पिला के ख़ून अपना
राहों में गुलाब बो रहा हूँ
कौन है अपना कौन पराया क्या सोचें
छोड़ ज़माना तेरा भी है मेरा भी
पाया नहीं वो जो खो रहा हूँ
तक़दीर को अपनी रो रहा हूँ
ठुकराओ अब कि प्यार करो मैं नशे में हूँ
जो चाहो मेरे यार करो मैं नशे में हूँ
Bashir Badr
सर से पा तक वो गुलाबों का शजर लगता है
बा-वज़ू हो के भी छूते हुए डर लगता है
मुझ में रहता है कोई दुश्मन-ए-जानी मेरा
ख़ुद से तन्हाई में मिलते हुए डर लगता है
ज़िंदगी तूने मुझे क़ब्र से कम दी है ज़मीं
पांव फैलाऊं तो दीवार में सर लगता है
वो बड़ा रहीम ओ करीम है मुझे ये सिफ़त भी अता करे
तुझे भूलने की दुआ करूँ तो मिरी दुआ में असर न हो
लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में
तुम तरस नहीं खाते बस्तियां जलाने में
और जाम टूटेंगे इस शराब-ख़ाने में
मौसमों के आने में मौसमों के जाने में
हर धड़कते पत्थर को लोग दिल समझते हैं
उम्रें बीत जाती हैं दिल को दिल बनाने में
Gulzar
हम समझदार भी इतने हैं के
उनका झूठ पकड़ लेते हैं
और उनके दीवाने भी इतने के फिर भी
यकीन कर लेते है
Ham samajhdar bhi itne Hain Ki
Unka Jhooth pakad lete hain
Aur unke Deewane bhi itne Hain Ki fir bhi
Yakin kar lete hain
कभी जिंदगी एक पल में गुजर जाती है
कभी जिंदगी का एक पल नहीं गुजरता
Kabhi jindagi ek pal me gujar jaati hai
Kabhi jindagi ka ek pal nhi gujarta
जब से तुम्हारे नाम की मिसरी होंठ से लगाई है
मीठा सा गम मीठी सी तन्हाई है।
Jab Se Tumhare Naam Ki Misri Honth se lagai hai
Meetha Sa Gam Meethi Si Tanhai hhai
मेरी कोई खता तो साबित कर
जो बुरा हूं तो बुरा साबित कर
तुम्हें चाहा है कितना तू क्या जाने
चल मैं बेवफा ही सही
तू अपनी वफ़ा साबित कर।
Meri koi Khata to sabit kar
Jo Bura Hun To Bura sabit kar
Tumhen Chaha Hai Kitna tu kya Jaane
Chal Main Bewafa Hi Sahi
Tu Apni Wafa sabit Kar
पलक से पानी गिरा है, तो उसको गिरने दो,
कोई पुरानी तमन्ना, पिंघल रही होगी।
Palak se Pani Gira Hai To usko Girne do
koi purani Tamanna pighal Rahi Hogi
मैंने मौत को देखा तो नहीं,
पर शायद वो बहुत खूबसूरत होगी।
कमबख्त जो भी उससे मिलता हैं,
जीना ही छोड़ देता हैं।।
Maine Maut Ko Dekha To Nahin
Par Shayad vo bahut Khubsurat Hogi
Kambakht jo bhi usse Milta Hai
Jina Hi Chhod deta hain
किसने रास्ते मे चांद रखा था,
मुझको ठोकर लगी कैसे।
वक़्त पे पांव कब रखा हमने,
ज़िंदगी मुंह के बल गिरी कैसे।।
आंख तो भर आयी थी पानी से,
तेरी तस्वीर जल गयी कैसे।।।
Kisne Raste Mein Chand Rakha tha
Mujhko Thokar Lagi Kaise
Waqt pe Paon kab Rakha Humne
Jindagi Munh ke bal Giri Kaise
Aankh To Bhari Thi Pani Se
Teri tasvir Jal Gai Kaise
देर से गूंजते हैं सन्नाटे,
जैसे हम को पुकारता है कोई।
हवा गुज़र गयी पत्ते थे कुछ हिले भी नहीं,
वो मेरे शहर में आये भी और मिले भी नहीं।।
Der Se Guzarte hain Sannatte
Jaise Humko Pukarta Hai Koi
Hawa Gujar Gai Patte the Kuchh hile bhi nhi
Vo Mere Shahar Mein Aaye bhi aur Mile Bhi Nhi
वो मोहब्बत भी तुम्हारी थी नफरत भी तुम्हारी थी,
हम अपनी वफ़ा का इंसाफ किससे माँगते..
वो शहर भी तुम्हारा था वो अदालत भी तुम्हारी थी
Vo Mohabbat Bhi Tumhari Thi Nafrat bhi Tumhari Thi
Ham Apni Wafa ka Insaaf kisse mangte
Vo Shahar bhi Tumhara tha vo Adalat bhi Tumhari thi
आप के बाद हर घड़ी हम ने
आप के साथ ही गुज़ारी है
Aap ke bad Har Ghadi Humne
Aapke sath hi Gujari hai
Mir Taqi Mir
बारे दुनिया में रहो ग़म-ज़दा या शाद रहो
ऐसा कुछ कर के चलो याँ कि बहुत याद रहो
दिल की वीरानी का क्या मज़कूर है
ये नगर सौ मर्तबा लूटा गया
रोते फिरते हैं सारी सारी रात
अब यही रोज़गार है अपना
बेवफ़ाई पे तेरी जी है फ़िदा
क़हर होता जो बा-वफ़ा होता
क्या कहें कुछ कहा नहीं जाता
अब तो चुप भी रहा नहीं जाता
Nida Fazli
होश वालों को ख़बर क्या बे-ख़ुदी क्या चीज़ है
इश्क़ कीजे फिर समझिए ज़िंदगी क्या चीज़ है
कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता
कहीं ज़मीन कहीं आसमाँ नहीं मिलता
धूप में निकलो घटाओं में नहा कर देखो
ज़िंदगी क्या है किताबों को हटा कर देखो
घर को खोजें रात दिन घर से निकले पाँव
वो रस्ता ही खो गया जिस रस्ते था गाँव
Majrooh Sultanpuri
देख ज़िंदाँ से परे रंग-ए-चमन जोश-ए-बहार
रक़्स करना है तो फिर पाँव की ज़ंजीर न देख
दिल की तमन्ना थी मस्ती में मंज़िल से भी दूर निकलते
अपना भी कोई साथी होता हम भी बहकते चलते चलते
ग़म-ए-हयात ने आवारा कर दिया वर्ना
थी आरज़ू कि तिरे दर पे सुब्ह ओ शाम करें
कोई हम-दम न रहा कोई सहारा न रहा
हम किसी के न रहे कोई हमारा न रहा
कुछ बता तू ही नशेमन का पता
मैं तो ऐ बाद-ए-सबा भूल गया
Jaun Elia
अपने सब यार काम कर रहे हैं
और हम हैं कि नाम कर रहे हैं
एक ही तो हवस रही है हमें
अपनी हालत तबाह की जाए
जो गुज़ारी न जा सकी हम से
हम ने वो ज़िंदगी गुज़ारी है
ये मुझे चैन क्यूँ नहीं पड़ता
एक ही शख़्स था जहान में क्या
बहुत नज़दीक आती जा रही हो
बिछड़ने का इरादा कर लिया क्या